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Saturday, 30 April 2016

ब्रिटिश शासन में सांविधानिक विकास

Unknown - April 30, 2016

भारत में संविधान का विकास 1857 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधीन और उसके पश्चात ब्रिटिश क्राउन के अधीन हुआ
ईस्ट इंडिया कम्पनी का संचालन दो समितियों द्वारा किया जाता था, "स्वामी मण्डल और संचालक मण्डल"
स्वामी मण्डल(Court of Proprietors)- कम्पनी के सभी साझीदार इसके सदस्य होते थे, जिन्हें सभी नियम कानून और अध्यादेश बनाने का अधिकार था, और इन्हें ये भी अधिकार था कि यदि कोई नियम संचालक मण्डल बना रहा है तो ये उसे रद्द भी कर सकते थे
संचालक मण्डल(Court of Directors)-  संचालक मण्डल में 24 सदस्य होते थे जो स्वामी मण्डल से ही होते थे और स्वामी मण्डल द्वारा ही चुने भी जाते थे, संचालक मण्डल का कार्य स्वामी मण्डल द्वारा बनाये गये नियमों का पालन करवाना था
भारतीय संविधान का ढांचा विकसित होने में मूल रूप से 1857 ई0 के बाद ब्रिटिश क्राउन द्वारा किये गये संवैधानिक परिवर्तन महत्वपूर्ण हैं

रेग्युलेटिंग एक्ट (Regulation Act)1773 -
मद्रास और बम्बई प्रेसिडेंसियों को बंगाल प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया
कलकत्ता के फोर्ट विलियम में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी जिसका अधिकार क्षेत्र बंगाल, बिहार तथा उडीसा तक था
इस नियम का मूल उद्देश्य कम्पनी की गतिविधियों को ब्रिटिश क्राउन की निगरानी में लाना था
पिट्स इंडिया एक्ट (Pits India Act)1784
एक नियंत्रण मंडल (Board of Control)की स्थापना की गयी
संचालक मंडल, नियंत्रण मंडल की सभी आज्ञाएं मानने के लिये बाध्य था
और स्वामी मण्डल के संचालक मण्डल के फैसले उलटने के अधिकार को खत्म कर दिया गया

चार्टर अधिनियम (Charter Act)1793
नियंत्रण मण्डल के सदस्यों और स्टाफ को भारतीय राजस्व से वेतन देना प्रारम्भ किया गया, जो 1919 तक जारी रहा
चार्टर अधिनियम(Charter Act) 1813

इस चार्टर से कम्पनी के अधिकार पत्र को 20 वर्ष के लिये बढा दिया गया
कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार(Monopoly) को समाप्त कर दिया गया
हालां�
[
. पाँचवी अनुसूची - [अनुच्छेद 244(1)] - अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जन-जातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित उपबंध।
6. छठी अनुसूची - [अनुच्छेद 244(2), 275(1)] - असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के विषय मे उपबंध।
7. सातवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 246] - विषयों के वितरण से संबंधित सूची-1 संघ सूची, सूची-2 राज्य सूची, सूची-3 समवर्ती सूची।
8. आठवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 344(1), 351] - भाषाएँ - 22 भाषाओं का उल्लेख।
9. नवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 31 ख ] - कुछ भुमि सुधार संबंधी अधिनियमों का विधिमान्य करण।
10.दसवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 102(2), 191(2)] - दल परिवर्तन संबंधी उपबंध तथा परिवर्तन के आधार पर अ
११ ग्यारवी अनुसूची - पन्चायती राज से सम्बन्धित
१२ बारह्ववी अनुसूची - यह अनुसूची संविधान मे ७४ वे संवेधानिक संशोंधन द्वारा जोडि गई।
इतिहास

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई १९४५ में ब्रिटेन ने भारत संबन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा जिसमें ३ मंत्री थे। १५ अगस्त, १९४७ को भारत के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य ९ दिसम्बर १९४६ से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इस संविधान सभा ने २ वर्ष, ११ माह, १८ दिन मे कुल १६६ दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में डॉ भीमराव अंबेदकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसलिए उन्होंने संविधान का निर्माता कहा जाता है।

: भारतीय संविधान की प्रकृति
संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय ने इस को संघात्मक संविधान माना है, परन्तु विद्वानों में मतभेद है । अमेरीकी विद्वान इस को छदम-संघात्मक-संविधान कहते हैं, हालांकि पूर्वी संविधानवेत्ता कहते है कि अमेरिकी संविधान ही एकमात्र संघात्मक संविधान नहीं हो सकता । संविधान का संघात्मक होना उसमें निहित संघात्मक लक्षणों पर निर्भर करता है, किन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय (पि कन्नादासन वाद) ने इसे पूर्ण संघात्मक माना है ।

आधारभूत विशेषताएं

१ शक्ति विभाजन -यह भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है , राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों मे विभाजित होती है शक्ति विभाजन के चलते द्वेध सत्ता [केन्द्र-राज्य सत्ता ] होती है
दोनों सत्ताएँ एक-दूसरे के अधीन नही होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती है दोनों की सत्ता अपने अपने क्षेत्रो मे पूर्ण होती है
२ संविधान की सर्वोचता - संविधान के उपबंध संघ तथा राज्य सरकारों पर समान रूप से बाध्यकारी होते है [केन्द्र तथा राज्य शक्ति विभाजित करने वाले अनुच्छेद
1 अनुच्छेद 54,55,73,162,241
2 भाग -5 सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय राज्य तथा केन्द्र के मध्य वैधानिक संबंध
3 अनुच्छेद 7 के अंतर्गत कोई भी सूची
4 राज्यो का संसद मे प्रतिनिधित्व
5 संविधान मे संशोधन की शक्ति अनु 368इन सभी अनुच्छेदो मे संसद अकेले संशोधन नही ला सकती है उसे राज्यो की सहमति भी चाहिए
अन्य अनुच्छेद शक्ति विभाजन से सम्बन्धित नही है
3 लिखित सविन्धान अनिवार्य रूप से लिखित रूप मे होगा क्योंकि उसमे शक्ति विभाजन का स्पषट वर्णन आवश्यक है। अतः संघ मे लिखित संविधान अवश्य होगा
4 सविन्धान की कठोरता इसका अर्थ है सविन्धान संशोधन मे राज्य केन्द्र दोनो भाग लेंगे
5 न्यायालयो की अधिकारिता- इसका अर्थ है कि केन्द्र-राज्य कानून की व्याख��

 5 न्यायालयो की अधिकारिता- इसका अर्थ है कि केन्द्र-राज्य कानून की व्याख्या हेतु एक निष्पक्ष तथा स्वतंत्र सत्ता पर निर्भर करेंगे
विधि द्वारा स्थापित 1.1 न्यायालय ही संघ-राज्य शक्तियो के विभाजन का पर्यवेक्षण करेंगे
1.2 न्यायालय सविन्धान के अंतिम व्याख्याकर्ता होंगे भारत मे यह सत्ता सर्वोच्च न्यायालय के पास है ये पांच शर्ते किसी सविन्धान को संघात्मक बनाने हेतु अनिवार्य है
भारत मे ये पांचों लक्षण सविन्धान मे मौजूद है अत्ः यह संघात्मक है परंतु

भारतीय संविधान मे कुछ विभेदकारी विशेषताए भी है
1 यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है
2 राज्य अपना पृथक संविधान नही रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनो पर लागू होता है
3 भारत मे द्वैध नागरिकता नही है। केवल भारतीय नागरिकता है
4 भारतीय संविधान मे आपातकाल लागू करने के उपबन्ध है [352 अनुच्छेद] के लागू होने पर राज्य-केन्द्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जायेगा तथा वह एकात्मक संविधान बन जायेगा। इस स्थिति मे केन्द्र-राज्यों पर पूर्ण सम्प्रभु हो जाता है
5 राज्यों का नाम, क्षेत्र तथा सीमा केन्द्र कभी भी परिवर्तित कर सकता है [बिना राज्यों की सहमति से] [अनुच्छेद 3] अत: राज्य भारतीय संघ के अनिवार्य घटक नही हैं। केन्द्र संघ को पुर्ननिर्मित कर सकती है
6 संविधान की 7 वीं अनुसूची मे तीन सूचियाँ हैं संघीय, राज्य, तथा समवर्ती। इनके विषयों का वितरण केन्द्र के पक्ष मे है
6.1 संघीय सूची मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय हैं
6.2 इस सूची पर केवल संसद का अधिकार है
6.3 राज्य सूची के विषय कम महत्वपूर्ण हैं, 5 विशेष परिस्थितियों मे राज्य सूची पर संसद विधि निर्माण कर सकती है किंतु किसी एक भी परिस्थिति मे राज्य केन्द्र हेतु विधि निर्माण नहीं कर सकते
क1 अनु 249—राज्य सभा यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्र हित हेतु यह आवश्यक है [2\3 बहुमत से]

: भारतीय संविधान मे कुछ विभेदकारी विशेषताए भी है
1 यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है
2 राज्य अपना पृथक संविधान नही रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनो पर लागू होता है
3 भारत मे द्वैध नागरिकता नही है। केवल भारतीय नागरिकता है
4 भारतीय संविधान मे आपातकाल लागू करने के उपबन्ध है [352 अनुच्छेद] के लागू होने पर राज्य-केन्द्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जायेगा तथा वह एकात्मक संविधान बन जायेगा। इस स्थिति मे केन्द्र-राज्यों पर पूर्ण सम्प्रभु हो जाता है
5 राज्यों का नाम, क्षेत्र तथा सीमा केन्द्र कभी भी परिवर्तित कर सकता है [बिना राज्यों की सहमति से] [अनुच्छेद 3] अत: राज्य भारतीय संघ के अनिवार्य घटक नही हैं। केन्द्र संघ को पुर्ननिर्मित कर सकती है
6 संविधान की 7 वीं अनुसूची मे तीन सूचियाँ हैं संघीय, राज्य, तथा समवर्ती। इनके विषयों का वितरण केन्द्र के पक्ष मे है
6.1 संघीय सूची मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय हैं
6.2 इस सूची पर केवल संसद का अधिकार है
6.3 राज्य सूची के विषय कम महत्वपूर्ण हैं, 5 विशेष परिस्थितियों मे राज्य सूची पर संसद विधि निर्माण कर सकती है किंतु किसी एक भी परिस्थिति मे राज्य केन्द्र हेतु विधि निर्माण नहीं कर सकते
क1 अनु 249—राज्य सभा यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्र हित हेतु यह आवश्यक है [2\3 बहुमत से] किंतु यह बन्धन मात्र 1 वर्ष हेतु लागू होता है
क2 अनु 250— राष्ट्र आपातकाल लागू होने पर संसद को राज्य सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार स्वत: मिल जाता है
[28/04 09:54] ध्येय Ias: क3 अनु 252—दो या अधिक राज्यों की विधायिका प्रस्ताव पास कर राज्य सभा को यह अधिकार दे सकती है [केवल संबंधित राज्यों पर]
क4 अनु253--- अंतराष्ट्रीय समझौते के अनुपालन के लिए संसद राज्य सूची विषय पर विधि निर्माण कर सकती है
क5 अनु 356—जब किसी राज्य मे राष्ट्रपति शासन लागू होता है, उस स्थिति मे संसद उस राज्य हेतु विधि निर्माण कर सकती है
7 अनुच्छेद 155 – राज्यपालों की नियुक्ति पूर्णत: केन्द्र की इच्छा से होती है इस प्रकार केन्द्र राज्यों पर नियंत्रण रख सकता है
8 अनु 360 – वित्तीय आपातकाल की दशा मे राज्यों के वित्त पर भी केन्द्र का नियंत्रण हो जाता है। इस दशा मे केन्द्र राज्यों को धन व्यय करने हेतु निर्देश दे सकता है
9 प्रशासनिक निर्देश [अनु 256-257] -केन्द्र राज्यों को राज्यों की संचार व्यवस्था किस प्रकार लागू की जाये, के बारे मे निर्देश दे सकता है, ये निर्देश किसी भी समय दिये जा सकते है, राज्य इनका पालन करने हेतु बाध्य है। यदि राज्य इन निर्देशों का पालन न करे तो राज्य मे संवैधानिक तंत्र असफल होने का अनुमान लगाया जा सकता है
10 अनु 312 मे अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान है ये सेवक नियुक्ति, प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक क्षेत्रों मे पूर्णत: केन्द्र के अधीन है जबकि ये सेवा राज्यों मे देते है राज्य सरकारों का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है
11 एकीकृत न्यायपालिका
12 राज्यों की कार्यपालिक शक्तियां संघीय कार्यपालिक शक्तियों पर प्रभावी नही हो सकती है।

: संविधान की प्रस्तावना                                                                                  

मुख्य लेख : भारतीय संविधान की उद्देशिका
संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व मे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएँ, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है इसी कारण यह ‘हम भारत के लोग’ इस वाक्य से प्रारम्भ होती है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद मे कहा गया था कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नही करती अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नही कर सकता, परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है जिस पर कोई प्रश्न नही उठाया जा सकता है।
संविधान की प्रस्तावना:
" हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद
द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

: भारतीय संविधान की प्रस्तावना : सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
● भारतीय संविधान के किस भाग को ‘संविधान की कुँजी’ की संज्ञा दी गई है— प्रस्तावना को
● भारत के संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका किन शब्दों से शुरू होती है— हम, भारत के लोग
● संविधान निर्माताओं ने सबसे अधिक ध्यान किस पर दिया है— प्रस्तावना पर
● भारत के संविधान की प्रस्तावना में प्रथम संशोधन कब हुआ— 1976 ई.
● संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत किस प्रकार का राष्ट्र है— धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र
● ‘भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है’ इसका क्या अर्थ है— यह किसी निश्चित धर्म का समर्थन नही करता है
● 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में कौन-से शब्द बढ़ाए गए— समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष व अखंडता
● ‘भारत एक गणतंत्र’ इसका क्या अर्थ है— भारत में वंशानुगत शासक नहीं है
● कौन-सा शब्द संविधान की उद्देशिका में नहीं है— लोक कल्याण
● कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य क्या है— कमजोर वर्गों के कल्याण का प्रबंध करना
● भारत में लौकिक सांर्वभौमिकता हैं क्यों— क्योंकि संविधान की प्रस्तावना ‘हम, भारत के लोग’ से शुरू होती है
● भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत के शासन की शक्ति किसके पास है— जनता के पास
● भारतीय संविधान की उद्देशिका में परिवर्तन किस संशोधन अधिनियम में किए गए— 42वें संशोधन अधिनियम में
● संविधान की प्रस्तावना का वह प्रावधान जो सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार प्रदान करता है क्या कहलाता है— प्रजातंत्र
● संविधान की प्रस्तावना में देश को किस नाम से पुकरा गया है— भारत और इंडिया
● भारतीय संविधान में किस प्रकार का लोकतंत्र अपनाया गया है— लोकतांत्रिक गणतंत्र

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